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खुली मायावती की पोल? दयाशंकर सिंह के बयान पर की ये घटिया सियासत, सूबे की सत्ता हथियाने का नया कार्ड

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खुद को देवी का दर्जा देने वाली मायावती के भक्तों का गुस्सा अपनी देवी के लिए दिखाई पड़ रहा है। जयललिता, ममता और मायावती ने मोदी सरकार को इस पर घेरना शुरू कर दिया है। बीजेपी इस मामले पर कुछ नहीं बोल सकती क्‍योंकि दयाशंकर सिंह ने जो कुछ कहा उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है और कड़ी से कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया गया है लेकिन इस बीच बीएसपी के गुंडों या कार्यकर्ताओं ने भी मर्यादाओं को ताक पर रख दिया और सरेआम दयाशंकर सिंह की पत्‍नी और बेटियों को पेश करने की मांग कर डाली।
बहरहाल, दयाशंकर की पत्‍नी स्वाति सिंह ने कहा महिला के सम्मान के मुद्दे पर सियासत हो रही है लेकिन क्या मैं और मेरी बेटियां महिलाएं नहीं हैं। मेरे पति ने जो कुछ कहा है उस पर कानून अपने हिसाब से कार्रवाई करे, लेकिन इन लोगों को ये ताकत और अधिकार कौन दे रहा है कि मुझे और मेरी बेटियों को सरेआम पेश करने लगे? स्वाति सिंह का ये भी कहना है कि उनकी बच्चियां बेहद सहमी हुई हैं और घर से बाहर निकलने में भी डर रही हैं। महिलाओं के सम्मान पर उठे एक मुद्दे में ये तीन महिलाएं भी हैं जो अब डर और खौफ के साए में जी रही हैं।
बीएसपी की कुछ महिला कार्यकर्ताएं दयाशंकर सिंह की जीभ काटने की भी मांग करती दिखाई दी और बयानों की मर्यादा को हर जगह ताक पर रख दिया गया। बीजेपी पहले ही दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकाल चुकी है और कानून के लिहाज से जो भी कार्रवाई होनी चाहिए उसके समर्थन में है।

इधर, केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा एक महिला होने के नाते में मायावती की भावनाओं को समझ सकती हूं, लेकिन मायावती इस तरह की राजनीति कर रही हैं जैसे उनकी लॉटरी खुल गई हो। पहले गुजरात में दलितों की पिटाई का मुद्दा और फिर मायावती पर बयान का मुद्दा दोनों ने ही ये आभास करा दिया कि देश में दलितों की हालत कितनी खराब है।
दलितों की हालत तो खराब है ही, लेकिन उसके जिम्मेदार कौन लोग हैं? जाहिर तौर पर वही ‘देवी’ और देवता जो उनके रहनुमां बनते हैं। मायावती को दलितों की जितनी चिंता खुद पर की गई अभद्र टिप्पणी के बाद हो रही है, उतनी शायद पिछले पांच सालों में कभी नहीं हुई होगी।

यूपी चुनाव में मुकाबला बीएसपी और बीजेपी के बीच ही दिखाई पड़ता है। ऐसे में एक बयान ने मायावती को बैठे बिठाए एक मुद्दा दे दिया है। जबान का फिसलना हमेशा भारी पड़ता है। क्‍योंकि बंदूक से निकली गोली और मुंह से निकली बोली वापिस नहीं होती।

यकीनन दयाशंकर सिंह का बयान घटिया था और उस पर कार्रवाई होनी चाहिए। महिलाओं के खिलाफ होने वाली अभद्र टिप्पणियों पर लगाम लगाने के लिए एक मिसाल भी कायम की जानी चाहिए, लेकिन इस मांग के साथ ही साथ ये क्‍यों भूला जा रहा है कि दयाशंकर की जिस बीवी और बेटी पर सरेआम अभद्र टिप्पणी हो रही है वो एक महिला ही है?
क्या पार्टी अध्यक्ष और कार्यकर्ताओं की ‘देवी’ महिला और बयान देने वाले के घर की महिलाओं में फर्क है? क्या बयान देने वाले के घर की महिलाएं और बच्चियां भी सजा की हकदार हैं। इस बात का जवाब ममता और जया को भी देना चाहिए जो मायावती पर हुई अभद्र टिप्पणी को महिलाओं का अपमान बता रही थीं।

दरअसल, इसमें कोई संदेह नहीं कि महिलाओं के अपमान के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन क्या इस वक्त चल रही राजनीति का महिला सम्मान से कोई लेना-देना है। जो घटिया बयान दयाशंकर जैसे लोगों के मुंह से निकला वो अब बीएसपी के कार्यकर्ता सड़कों पर उसकी पत्‍नी और बेटियों के खिलाफ बोल रहे हैं और दलितों की ‘देवी’ कह रही हैं आपके देवी देवताओं का अपमान होगा तो क्या आपको गुस्सा नहीं आएगा?

दलितों का उद्धार तब तक नहीं हो सकता जब दलितों के कथित मसीहा खुद सामंतवादी बनने की होड़ में रहेंगे। यूपी चुनाव के मद्देनजर पहले गुजरात में वायरल हुए दलितों के वीडियो पर सियासत हुई और आनंदी बेन, राहुल और केजरीवाल समेत तमाम नेताओं का रैला उनके पास पहुंच गया। मायावती पर हुई टिप्पणी को भी दलितों के सम्मान से जोड़ दिया गया। राजनीति के लिहाज से तो ये मुद्दा ठीक है लेकिन दलित हितों के लिहाज से ये बहुत खतरनाक है।
इसी तरह के घटिया मुद्दों की वजह से दलितों के बारे में चिंतन हाशिए पर चला गया है। दलितों को सम्मान दिलाने के बजाए उनके अपमान को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने से ज्यादा फायदा इन नेताओं को मिलता है। मायावती लंबे समय से राजनीति कर रही हैं और उप्र की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं सत्ता मिलते ही वो दलित से सामंती हो जाती हैं और दलितों की हालत जस की तस बनी रहती है।

बहरहाल, इस मुद्दे पर अब दयाशंकर सिंह की पत्‍नी स्वाति सिंह ने भी उनपर और उनकी बेटियों पर की गई अभद्र टिप्पणियों के खिलाफ मामला दर्ज कराने की बात कही है।


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